Why Mobile Phone Companies harm the planet By hindering phone repair? फ़ोन कंपनियों के झांसे से बचे
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इस छोटे से डिवाइस में मानो आज पूरी दुनिया समा गई है, इसी से हम जान करी पाते है और इस के जरिए हम लोगो से जुड़ पाते है और आज तो इसी के जरिए हम अपना मनोरंजन भी करते है।
लेकिन Why Mobile Phone Companies harm the planet By hindering phone repair? फ़ोन कंपनियों के झांसे से बचे
और अगर हम इसकी कमियां गिनने बैठे तो वो क्या है? हैं, ये हमारा बहुत सारा समय खाता है । यह हम असल दुनिया से कटता है,और कई बार इसकी वजह से डिप्रेशन जैसी बीमारियां भी होने लगती है, और क्या कमियां है, हां , स्मार्टफोन और ऐसे दूसरे गैजेट्स हरे पर्यवरण पर भी भारी है, क्योंकि उनकी वजह से इलेक्ट्रॉनिक कचरा यानी ई ही वेस्ट पैदा होता है।
क्योंकि हम हम नए नए गैजेट खरीदते जा रहा है और थोड़े भीं पुराने पड़े अपने गैजेट फेंक रहे है।
क्या आपने अपना टूटा स्मार्टफोन ठीक कराया है या उसकी जगह फटा फट नया फ़ोन खरीद लिया है?
फोन को रिपेयर करना मुश्किल है, और यही दिक्कत है दुनिया भर में हर साल 5 करोड़ मैट्रिक टन ई – वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है,
यह हर समय 1000 लैपटॉप कचरे में फेकने के बराबर है. फिर भी, टेक कंपनियां टूटे फोन को रिपेयर करना मुश्किल और महंगा बना रही है, जय तरीका बिल्कुल सस्टेनेबल नहीं है. और इसके पीछे स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां है।
लेकिन हम अपने फोन की बैटरी आसानी से क्यों नहीं बदल सकते?
क्योंकि फोन बनाने वाली कंपनियां ऐसा नहीं चाहती. और बात यही नहीं रुकती, फोन खरीदने के तीन-चार साल बाद फोन कंपनियां उसकी सिक्योरिटी और सॉफ्टवेयर अपडेट में आपकी ज्यादा मदद नहीं करती. पुराने पड़े सॉफ्टवेयर में कोई सर नहीं खपाता । ऐसा जानबूझकर किया जाता है कंपनी चाहती हैं कि आप नए नए स्मार्टफोन खरीदते रहे, सही है किसी से स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां की कमाई होती है।
स्मार्टफोन में आए छोटी सी खराबी को भी ठीक करना एक बड़ा काम और चैलेंजिंग काम है, रजिस्टर स्टोर से ठीक कर आएंगे तो बहुत खर्चा होगा क्योंकि कंपनियां फोन की रिपेयरिंग से भी कमाती हैं।
एप्पल का नया आईफोन 15 इस बात का बढ़िया मिसाल है की कैसे फोन में आई खराबी को ठीक करना मुश्किल और महंगा सौदा है .इसमें सोफ्टवेयर लॉक है. अगर आपने किसी पार्ट की जगह कोई नया पार्ट लगाया है और वह एप्पल का नहीं है, तो फोन के सिस्टम को पता चल जाता है.
फिर फोन वार्निंग मैसेज दिखने लगता है या फिर चलना भी बंद कर देता है चलना भी बंद हो सकता है, एप्पल का कहना है कि वह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनका डिवाइस ठीक है और ठीक से काम करता है लेकिन असल में तो यह अपने महंगे स्पेयर पार्ट बेचने का तरीका है।
इतनी आफत से बचने के लिए लोग अक्सर नया फोन खरीद लेते हैं, इसका मतलब है कि ज्यादा स्मार्टफोन बनते हैं, दुनिया भर में भेजे जाते हैं, उनके लिए ज्यादा खनन होता है और संसाधनों की बर्बादी होती है. इससे कार्बन उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक कचरे का अंबार बढ़ता है।
ई-वेस्ट में बहुत सारे खतरनाक तत्व होते हैं जैसे कैडमियम, लेड, मरकरी और डायोक्सीन. साथ ही सोना और दुर्लभ तत्व जैसी कीमती धातुएं भी होती हैं.
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में 2022 में 530 करोड़ मोबाइल फोन कचरे में फेंक दिए गए।
अमेरिका में तो लोग औसतन डेढ़ साल में अपना फोन बदल देते हैं, भारत में भी ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है आपने भी हमेशा अपने आसपास कुछ लोगों को देखा होगा जिन पर हमेशा नए-नए फोन खरीदने का जुनून सवार रहता है।
अगर ऐसा ही चला रहा तो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया भर में सालाना ई – कचरा दोगुना होकर 12 करोड़ तान के आसपास पहुंच सकता है।
जहां तक बात भारत की है तो वित्त वर्ष 2021-22 मैं कुल ई वेस्ट 16 लाख टन से ज्यादा रहा. इसकी वजह है नए-नए गैजेट्स को लेकर नए-नए स्मार्टफोन को लेकर हमारा लालच. अगर उसे हमने नहीं संभाला तो ई कचरे का यह पहाड़ बढ़ता ही जाएगा.
नई गैजेट खरीदने के बजाय उन्हें ठीक करने से पर्यावरण को फायदा होगा.
पहले भी बहुत कोशिश की गई है की एप्पल माइक्रोसॉफ्ट और अमेजॉन जैसी कंपनियों को सस्टेनेबल प्रोडक्ट्स बनाने के लिए राजी किया जाए.
लेकिन बड़ी कंपनियों ने तो सांसदों पर लाखों डॉलर खर्च कर दिए ताकि वह रिपेयरिंग से जुड़े बने कानून का समर्थन न करें, कंपनियां रिपेयरिंग के विरोध में बहुत से कारण गिनती हैं
1 – वह कहती हैं कि रिपेयरिंग के अधिकार से उनकी बौद्धिक संपदा का हनन होगा।
2 – उनकी दूसरी चिंता है ग्राहकों की सुरक्षा , क्या होगा अगर डिवाइस को ठीक करते हुए उनको चोट लग जाए।
3 – कंपनियां यह भी दावा करती हैं कि डिवाइस की रिपेयरिंग से हैकिंग बड़ सक्ति है।
4 – और कंपनियां आखिरी दलील यह देती हैं कि खराब और घटिया रिपेयरिंग से उनकी रेपुटेशन खराब हो सकती है।
रिपेयरिंग के अधिकार के समर्थक इन दलीलों को बेबुनियाद मानती है। वह कहते हैं कि कंपनियों को इस बात की चिंता है कि रिपेयरिंग से उनकी कमाई बंद हो सकती है,
बड़ी कंपनियों के बड़ी पहुंच के बावजूद, सरकारों ने कुछ कदम उठाए हैं ,
यूरोपीय संसद ने हाल में राइट टू रिपेयरिंग यानी रिपेयरिंग के अधिकार को हरी झंडी दी.
नए कानून के तहत विक्रेता और निर्माता कम्पनी को वारंटी की अवधि मैं फ्री रिपेयरिंग की सुविधा देनी होगी।
अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में भी इलेक्ट्रॉनिक राइट टू रिपेयर एक्ट पास हो चुका है, इस तहत हर किसी को डिवाइस रिपेयर करने के लिए पार्ट्स, टूल्स, और जरूरी मैन्युअल मुहैया करना होगा,
इसका मकसद है कि कार्बन उत्सर्जन और ई-वेस्ट घाटे,
यह कोसिसे दमदार लगते हैं लेकिन बड़ी कंपनियों से unsustainable बिजनेस तौर तरीको को खत्म करना इतना आसान नहीं है।
अगर आप भी अपना फोन को ठीक करना चाहते हैं तो
Ifixit.com आपकी मदद कर सकती है
आप अपनी बताइए परेशानी से बचने के लिए आप भी नए गैजेट्स खरीदने के हिमायती हैं या उन्हें रिपेयर करने के?
कंपनी को तो अपना कारोबार बड़ाना है, इसलिए मैंने लैपटॉप, वीडियो गेम्स, स्मार्टफोंस टैबलेट और ना जाने क्या क्या लाती रहेगी और आपको ललचाती रहेंगी।
लेकिन यह लालच आपकी जेब पर भी भारी पड़ रहा है, और पर्यावरण पर भी खतरे बड़ा रहा है। क्योंकि आमतौर पर नया डिवाइस खरीदने के बाद पुराना वाला कचरा में ही जाता है और इससे ई-वेस्ट बढ़ता चला जाता है।
तो समाधान क्या है:
समाधान यही है कि अपने डिवाइस को भरपूर इस्तेमाल कीजिए और अगर मैं खराब हो जाते हैं तो नया खरीदने के पहले एक बार जरूर कोशिश कीजिए कि क्या उसे ठीक कराया जा सकता है.
अपने पर्यावरण की हिफाजत के लिए हमें इतना तो करना होगा।