Gyanvapi Masjid controversy
नमस्कार साथियों जैसा कि हम सभी इस बात से ज्ञात है कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, अब काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में हिंदू पक्ष में कोर्ट के फैसले आने शुरू हो चुके हैं। वाराणसी कोर्ट ने 1996 के एक दस्तावेज के आधार पर वाराणसी के व्यास तहखाने में पूजा की इजाज़त दे दी है। साथियों कुछ लोग व्यास तहखाने में पूजा के अधिकार की तुलना अस्सी के दशक में राम मंदिर में ताला खुलने की घटना से कर रहे हैं।
Table of Contents
साथियों आप लोग की जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू पक्ष लगातार यह दावा करता रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर को तोड़ कर बनाया गया है। साथियों एएसआई के सर्वे के अनुसार मस्जिद के तहखाने में मंदिर होने के अनेकों सबूत मिले हैं। इसी के आधार पर हिंदू पक्ष तीन मांगे कर रहा है -:
पहली : पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा घोषित कर दिया जाए।
दूसरी : ज्ञानवापी मस्जिद को हटाकर, वहां पर मंदिर बनाया जाए।
तीसरी : मुसलमानों के वहां आने पर रोक लगाई जाए।
साथियों आप लोग में से बहुत से लोग हैरान होंगे कि आखिर सर्वे के दौरान ऐसा क्या मिल गया कि हिंदू पक्ष वहां मंदिर बनाने की बात कर रहा है।
तो आइए आज हम आप लोग को 350 साल पुराने इस विवाद की एक – एक घटना का ब्योरा देंगे और हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि आज हम आप लोग को ऐसी एक एक जानकारी देंगे जो शायद आज से पहले एक साथ किसी और प्लेटफार्म पर नहीं मिली होगी। इसलिए इस आर्टिकल को अपने दोस्तों में जरूर साझा करें।
दोस्तों एक ऐसा शहर जिसका नाम सुनते ही मन भक्ति भाव से भर जाता है। एक ऐसा शहर जिसे विश्व की सबसे पुरानी नगरी कहा गया है। एक ऐसा शहर जो भगवान शिव की त्रिशूल पर बसा हुआ है। एक ऐसा शहर जिसका जिक्र विश्व के सबसे पुराने ऋग्वेद, रामायण, महाभारत और स्कंद पुराण तक में है। कुल 18 पुराणों में स्कंद पुराण सबसे बड़ा है, जिसकी रचना महर्षि व्यास जी ने की। स्कंद पुराण के कुल सात खंड हैं -:
- महेश्वर खंड
- वैष्णव खंड
- ब्रह्मा खंड
- काशी खंड
- अवंत्य खंड
- नागर खंड
- प्रभास खंड
साथियों, इन सात खंडों के काशी खंड में विश्वनाथ मंदिर का जिक्र है।
मंदिर पर हमले –:
साथियों अब बात करते हैं उन हमलों की जिसने ज्ञानवापी मंदिर को एक नहीं कई बार तोड़ा है। साथियों काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में सबसे पुख्ता सबूत या इतिहासकारों की जो आम राय है वो ये है कि इसे ग्यारवीं शताब्दी में राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। लेकिन साथियों इस मंदिर के बनने के कुछ समय बाद ही बारवीं शताब्दी में इस पर पहली बार हमला किया गया। 12वी शताब्दी में पैदा हुए एक कवि और इतिहासकार हसन निजामी ने अपनी किताब ताज-उल-मासिल में विश्वनाथ मंदिर में हुए हमले के बारे में विख्यात में लिखा है।
निजामी लिखते हैं कि 1994 में कन्नौज के राजा जयचंद्र को हराने के बाद मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक बनारस की ओर चला गया। कहा जाता है कि बनारस पहुंच कर इन लोगो ने बहुत सारे मंदिरों को गिराया। इसी दौरान इन लोगो ने काशी के मंदिर पर भी हमला किया और उसे पूरी तरह तोड़ डाला। काशी विश्वनाथ पर ये पहला हमला था।
इसके बाद इल्तुतमिश के वक्त हिंदू व्यापारियों ने काशी में गिराए गए कई मंदिरों को फिर से बनवाना शुरू किया। इन्ही में से काशी विश्वनाथ मंदिर भी शामिल है।
इसके बाद सरकी सल्तनत का राज आया और इसी सरकी सल्तनत के तीसरे सुल्तान महमूद शाह सरकी ने 1436 से 1558 के बीच फिर से मंदिरों को तोड़ना शुरू किया। इस दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को फिर से तोड़ दिया गया। ये दूसरा मौका था जब काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया था।
अगले सवा सौ सालों तक फिर वहां कोई मंदिर नहीं था। फिर हिंदुस्तान में बादशाह अकबर का राज हुआ। इन्ही अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक टोडरमलजी ने अपने बेटे को बोलकर मंदिर को दोबारा बनवाया।
इसके बाद 1632 में शाहजहां ने इसे गिराने के लिए सेना की टुकड़ी भेज दी, मगर भीड़ के भारी विरोध के बाद उन्हें लौटना पड़ा। बाद के सालों में शाहजहां के बीमार होने के बाद उसकी पकड़ कमजोर पड़ने लगी। बाद में उसी शाहजहां का बेटा औरंगजेब अपने भाइयों को मारकर बादशाह बन गया था। औरंगजेब अब तक हुए तमाम मुगल शासकों में सबसे कट्टर और क्रूर था।
औरंगजेब को जैसे ही पता चला कि बनारस के कई विद्यालयों में बच्चे भारतीय संस्कृति और धर्म की शिक्षा लेते हैं तो औरंगजेब ने सैनिकों को आदेश देकर इन विद्यालयों और पाठशालाओं को गिरवा दिया। इसी औरंगजेब ने 49 साल के अपने शासनकाल में देश भर के सैकड़ो मंदिर गिरवाए। इसी औरंगजेब ने हिंदुओं पर जजिया – कर लगवाया। इसी औरंगजेब ने जबरन जनेऊ उतरवाकर असंख्य हिंदुओं का धर्म बदलवाया।
उसी औरंगजेब की कट्टर सोच ने देश के कई मंदिर गिरवाए, जिसमे काशी विश्वनाथ मंदिर भी शामिल था। औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर को गिराने का फरमान भी जारी किया था। ये फरमान आज भी कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है। Us समय के लेखक शाकिब मुस्तैद खान द्वारा लिखी गई Maasir – I – Alamgiri में मंदिर को गिराने की घटना का पूरा ब्योरा दिया गया है। इतिहासकार एल० पी० शर्मा ने अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखा है कि 1669 में औरंगजेब की तरफ से सभी सूबेदारो को ये आदेश दिया गया कि वो मंदिर, पाठशालाओं और विद्यालयों को तोड़ डालें और इसके लिए बकायदा एक विभाग तक बनाया गया।
औरंगजेब की क्रूरता के सौ साल बाद यानी कि 1777 के लगभग में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी मस्जिद के आस पास की जमीन को खरीद कर लोकल नवाब से बात करके वहां मंदिर बनवा दिया। अहिल्याबाई होलकर जी ने इसी परिसर पर मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का क्षत्र बनवाया, ग्वालियर की महारानी बेजाबाई ने ज्ञानवापी का मण्डप बनवाया और नेपाल के महाराजा ने वहां विशाल नंदी जी की प्रतिमा स्थापित करवाई।
नंदी प्रतिमा का मुख उल्टा होने का रहस्य यही है कि पहले जहां मंदिर था वहां मस्जिद बना ली गई। इसके बाद हिंदुओं ने ज्ञानवापी मंदिर को लेकर अपना संघर्ष जारी रखा।